मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए
अजीब खेल है दुनिया तेरी सियासत का
मैं पैदलों से पिटा हूँ वज़ीर होते हुए
नये तरीक़े से मैंने ये ये जंग जीती है
कमान फेंक दी तरकश में तीर होते हुए
जिसे भी चाहिए मुझसे दुआएँ ले जाए
लुटा रहा हूँ मैं दौलत फ़क़ीर होते हुए
तमाम चाहने वालों को भूल जाते हैं
बहुत-से लोग तरक़्क़ी -पज़ीर[1]होते हुए.
-मुनव्वर राना
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए
अजीब खेल है दुनिया तेरी सियासत का
मैं पैदलों से पिटा हूँ वज़ीर होते हुए
नये तरीक़े से मैंने ये ये जंग जीती है
कमान फेंक दी तरकश में तीर होते हुए
जिसे भी चाहिए मुझसे दुआएँ ले जाए
लुटा रहा हूँ मैं दौलत फ़क़ीर होते हुए
तमाम चाहने वालों को भूल जाते हैं
बहुत-से लोग तरक़्क़ी -पज़ीर[1]होते हुए.
-मुनव्वर राना
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