दिल ढूंढ़ता, है फिर वही..... फुर्सत के रात दिन...
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही...
जाड़ो की नर्म धुप और.....आँगन में लेट कर...
आँखों पे खींचकर तेरे..... आँचल के साए को...
औंधे पड़े रहे कभी......करवट लिए हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही .....
या गर्मियों की रात जब... पुरवाइयां चलें...
ठंडी सफ़ेद, चादरों पे.... जागें देर तक...
तारों को, देखते रहें.... छत पर पड़े हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
बर्फीली...सर्दियों की, किसी रात में कभी...
जाकर उसी पहाड़ के... पेहलू में बैठकर...
वादी में गूंजती हुई....खामोशियाँ सुने...
दिल ढूँढता, है फिर वही...फुर्सत के रात दिन...
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
- गुलज़ार
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ग्रेट
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