એક પત્થરમાંથી બનતા શિલ્પને આદર મળે,
જો મઠારો જિંદગીને તોજ કઈ નક્કર મળે.
હર વખત એ પ્રશ્ન ઘૂમરાયા કરે, હું કોણ છું?
હર વખત એ પ્રશ્નનો ઉત્તર મને અદ્ધર મળે.
વાત જે કરવી હતી એને, કદી ના થઇ શકી,
રાહ જોતા રહી ગયા કે, આગવો અવસર મળે.
કાશ થોડી લેતી-દેતી હોત, તો મળતા રહેત,
પણ હિસાબો એની સાથેના બધા સરભર મળે.
એક સધિયારો અપાવે, બે અડોઅડ આંગળી,
હૂંફના નામે મઢેલા, સ્પર્શના અસ્તર મળે.
ક્યાંક ખૂટે, ક્યાંક તૂટે, તે છતાં લખતા રહો...
શક્ય છે આ માર્ગ પર, આગળ જતા ઈશ્વર મળે.
- હિતેન આનંદપરા
સદભાગ્ય મારું કે શબ્દો મળ્યા તારે નગર જાવા ચરણ લઇ દોડવા બેસું તો વરસોના વરસ લાગે... this is a blog created by Vaishali Patel (Tanha Patel)....i had posted my own poems & gazals on it. You can also post yr feelings, emotions,& creations....For now jst enjoy my collection wch will hav more & more content in near future. do giv yr valuable suggesstions, comments & expressions.
Sunday, September 5, 2010
दिल ढूंढता, है फिर वही ..... फिल्म - ''आंधी''
दिल ढूंढ़ता, है फिर वही..... फुर्सत के रात दिन...
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही...
जाड़ो की नर्म धुप और.....आँगन में लेट कर...
आँखों पे खींचकर तेरे..... आँचल के साए को...
औंधे पड़े रहे कभी......करवट लिए हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही .....
या गर्मियों की रात जब... पुरवाइयां चलें...
ठंडी सफ़ेद, चादरों पे.... जागें देर तक...
तारों को, देखते रहें.... छत पर पड़े हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
बर्फीली...सर्दियों की, किसी रात में कभी...
जाकर उसी पहाड़ के... पेहलू में बैठकर...
वादी में गूंजती हुई....खामोशियाँ सुने...
दिल ढूँढता, है फिर वही...फुर्सत के रात दिन...
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
- गुलज़ार
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही...
जाड़ो की नर्म धुप और.....आँगन में लेट कर...
आँखों पे खींचकर तेरे..... आँचल के साए को...
औंधे पड़े रहे कभी......करवट लिए हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही .....
या गर्मियों की रात जब... पुरवाइयां चलें...
ठंडी सफ़ेद, चादरों पे.... जागें देर तक...
तारों को, देखते रहें.... छत पर पड़े हुए...
दिल ढूंढता, है फिर वही... फुर्सत के रात दिन...
बर्फीली...सर्दियों की, किसी रात में कभी...
जाकर उसी पहाड़ के... पेहलू में बैठकर...
वादी में गूंजती हुई....खामोशियाँ सुने...
दिल ढूँढता, है फिर वही...फुर्सत के रात दिन...
बैठें रहें, तसव्वुर-ए-जानां...किये हुए...
- गुलज़ार
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